करौली: राजस्थान का एक लाल रंग में रंगा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगर
करौली, राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है जो अपने लाल पत्थरों के महलों, भव्य मंदिरों, और प्राकृतिक अभ्यारण्यों के लिए प्रसिद्ध है।

राजस्थान के पूर्वी छोर पर बसा करौली एक ऐसा नगर है जो इतिहास, धर्म और प्रकृति – तीनों का अद्भुत समागम प्रस्तुत करता है। लाल बलुआ पत्थरों से सजी इसकी हवेलियाँ, मंदिर और महल न केवल स्थापत्य प्रेमियों को आकर्षित करते हैं, बल्कि शहर को एक विशिष्ट लालिमा भी प्रदान करते हैं, जो इसे बाकी शहरों से अलग पहचान देती है।
स्थापत्य और ऐतिहासिक धरोहरें -
करौली की ऐतिहासिक इमारतों में प्रयुक्त लाल पत्थर, केवल सौंदर्य ही नहीं बल्कि मजबूती का प्रतीक भी है। यहाँ के स्मारकों की नक्काशी और कलात्मकता इसे किसी जीवित संग्रहालय की तरह प्रस्तुत करती हैं। इनमें से सिटी पैलेस विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसे 14वीं सदी में राजा अर्जुनपाल ने बनवाया था। इसके बाद अठारहवीं सदी में राजा गोपाल सिंह ने इसका विस्तार किया। महल की भित्तिचित्र कला, नक्काशीदार झरोखे और ऊँचाई से दिखता करौली शहर, यहाँ आने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
आध्यात्मिक धरोहर -
करौली धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है। मदन मोहन जी मंदिर, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है, श्रद्धालुओं के लिए गहरी आस्था का केंद्र है। योद्धाओं के युद्ध पर जाने से पहले यहाँ आशीर्वाद लेने की परंपरा रही है। मंदिर की बनावट में स्थानीय लाल पत्थर का बेहतरीन प्रयोग देखने को मिलता है।
इसके अलावा, कैला देवी मंदिर, जो शहर से लगभग 25 किमी दूर स्थित है, नौ शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। चैत्र माह में लगने वाला यहाँ का विशाल मेला, दूर-दूर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। मंदिर के निकट स्थित गुफा मंदिर और कैला देवी अभ्यारण्य इस क्षेत्र को आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम बना देते हैं।
प्राकृतिक आकर्षण -
करौली केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक आदर्श स्थल है। कैला देवी अभ्यारण्य, जो आगे जाकर रणथम्भौर नेशनल पार्क से जुड़ता है, वन्यजीव प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। यहाँ बाघ, तेंदुआ, नीलगाय, चिंकारा जैसे जीवों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों की भी भरमार रहती है।
आसपास के दर्शनीय स्थल -
करौली के आस-पास कई ऐसे स्थल हैं जो इसे और भी खास बनाते हैं। गढ़मोरा , जो अरावली की गोद में बसा एक प्राचीन नगर है, अपने मंदिरों और बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का नारायणी माता मंदिर मकर संक्रांति के अवसर पर होने वाले मेले के लिए जाना जाता है।
वहीं, मण्डरायल का किला और मगरमच्छ अभ्यारण्य, देवगिरी और उत्गीर किले, तथा तिमनगढ़ का प्राचीन दुर्ग इतिहास और रोमांच के शौकीनों के लिए बेहतरीन स्थल हैं। तिमनगढ़ किले की वास्तुकला और इसका वीरता भरा इतिहास, करौली की गौरवशाली विरासत की कहानी सुनाते हैं।
हस्तशिल्प और स्थानीय कला -
करौली आने वाले पर्यटक यहाँ के स्थानीय उत्पादों जैसे चमड़े की जूतियाँ, काँच की चूड़ियाँ, लकड़ी के खिलौने और चांदी के आभूषणों की खरीदारी करना नहीं भूलते। यहाँ की हस्तशिल्प वस्तुएं न केवल पारंपरिक हैं, बल्कि उनमें स्थानीय संस्कृति की झलक भी मिलती है।
करौली कैसे पहुंचे ?
करौली जयपुर से लगभग 160 किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित है।
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट है।
- रेल मार्ग: सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हिण्डौन सिटी है, जो दिल्ली-मुंबई रूट से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग: राजस्थान के प्रमुख शहरों से करौली के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है, जिससे यहाँ पहुँचना सुविधाजनक रहता है।
करौली कब आएँ ?
करौली यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय सितंबर से मार्च तक का है, जब मौसम सुहावना रहता है। बारिश के मौसम (जून से अगस्त) में यहाँ की हरियाली और नदियाँ अपने पूर्ण सौंदर्य पर होती हैं।
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