2006 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बड़ा मोड़: 11 आरोपियों को 19 साल बाद हाई कोर्ट से मिली बरी

2006 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बड़ा फैसला, हाई कोर्ट ने सभी 11 आरोपियों को 19 साल बाद बरी किया। जानें कोर्ट का तर्क और आगे की कानूनी प्रक्रिया।

Jul 21, 2025 - 10:41
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2006 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बड़ा मोड़: 11 आरोपियों को 19 साल बाद हाई कोर्ट से मिली बरी
2006 train blast case

Mumbai Train Blast 2006— साल 2006 में हुए मुंबई सीरियल लोकल ट्रेन धमाकों के बहुचर्चित मामले में महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। मुंबई हाई कोर्ट ने इस मामले में दोषी करार दिए गए सभी 11 आरोपियों को बरी कर दिया है। यह फैसला उस वक्त आया है जब इस केस को लेकर लगभग दो दशक से कानूनी लड़ाई जारी थी।

क्या था मामला?

11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 7 सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे, जिसमें 189 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह हमले पश्चिम रेलवे की भीड़भरी लोकल ट्रेनों में पिक आवर के दौरान किए गए थे, जिससे पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। जांच एजेंसियों ने इसे आतंकी हमला करार दिया था और इंडियन मुजाहिदीन समेत अन्य संगठनों के कनेक्शन की जांच की गई थी।

ट्रायल कोर्ट का फैसला

निचली अदालत ने इस केस में 12 लोगों को दोषी ठहराया था। इनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद दी गई थी। जबकि एक आरोपी की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी।

हाई कोर्ट का फैसला

अब, 19 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, मुंबई हाई कोर्ट ने सभी 11 आरोपियों को दोषमुक्त घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूत पर्याप्त और विश्वसनीय नहीं थे। साथ ही अभियोजन पक्ष की जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए गए।

सूत्रों के मुताबिक, इस साल जनवरी में इस केस की अंतिम सुनवाई पूरी हो चुकी थी, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। दोषियों ने येरवडा, नाशिक, अमरावती और नागपुर की जेलों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

क्यों बरी किए गए आरोपी?

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जांच एजेंसियों द्वारा सबूतों को सही तरीके से नहीं जुटाया गया और मामले में कई प्रक्रिया संबंधी खामियां थीं। साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि कई गवाहों की गवाही विरोधाभासी रही और वैज्ञानिक सबूतों की कमी के चलते संदेह का लाभ आरोपियों को दिया गया।

इस फैसले के बाद राज्य सरकार के पास अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इस फैसले को चुनौती देगी या नहीं।

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Jitendra Meena Journalist, Editor ( Mission Ki Awaaz )