किरण बैरवा की कहानी - उमंग शेरनी

कहानी शीर्षक -"उमंग शेरनी"
भोली- सी प्यारी उमंग रहा करती थी एक छोटे- से घर में जो उसके सपनों की दुनिया थी । उसका जीवन ही यहां से शुरू हुआ। भाई बहनों में सबसे बड़ी, समझदार, सुशील या यों कहो कि परी थी परी।
सुबह की रौनक ही थी उसके हाथों से बनी चाय से.... पिता जी चाय पिओ और सुबह का आनंद लो..। माँ.. ओ माँ.... माँ सुनो तो... तुम क्या सुबह- सुबह ही काम में लग जाती है, ये ले चाय पी ।
ये जो कपड़े है ना तेरे हाथ में मुझे दे मैं धो देती हूँ।
कुछ यू बोलकर हमेशा काम को समेट लेती और सबको खुश रखा करती थी।
रमन छोटा सबसे खोटा ,खूब शैतान । दिनभर बच्चों के साथ घूमना, खेलना और हुड़दंग मचाना । जब कभी ज्यादा लड़ाई - झगड़ा कर लेता तो बचने के लिए आ जाता उमंग के पास।
एक दिन कुछ शैतान बच्चों की मण्डली ने रमन को स्कूल जाते बीच में ही पकड़ लिया। वह आव देखा न ताव दौड़ते हुए सुनसान जगह पर पहुंच गया। पीछे- पीछे शैतान मंडली तो थी ही, वह घबरा गया। चेहरे पर ओस की बूंदों के समान पसीने बहने लगें ।
रमन ने गिड़गिड़ाकर, रोकर मनाने की खूब कोशिश की पर उस शैतान मंडली ने रमन को पीट कर लहूलुहान कर दिया।
वह इतना घायल हो चुका था कि उससे बोला नहीं जा रहा था उठा नहीं जा रहा था। उसी वक्त उसके ज़हन में उसकी प्यारी दुलारी बहन की वो पंक्ति याद आई...
"तू रुक मत, तू थक मत, तू घबरा मत
बस थोड़ी कोशिश कर इस बार जीत तेरी"
जब कभी परेशानी में उमंग खुद होती या कोई और होता भी तो उत्साह बढ़ाने के लिए यह पंक्ति वह सबसे कहा करती थी।
हथेली को जमीन पर जोर लगाकर रमन उठ खड़ा हुआ और लड़खड़ाता हुआ घर की ओर चल पड़ा। जैसे ही घर पहुंचा। माँ को देखकर, पिता को देखा लेकिन उसकी आंखों को सुकून ही बहन को देखकर आया बिना रुके दौड़कर उमंग के गले लग गया और फूट - फूटकर रोने लगा। अपने दुप्पटे से रमन के आंसू पोछती हुई पूछने लगी, क्या हुआ? किसने किया ये सब?
सिसकते हुए रमन कहने लगा तू सही कहती थी बिना मतलब किसी से झगड़ा मत किया कर लेकिन मैं मानता कहां हूं। मेरी बुद्धि ही कहां चलती है इतना समझाने के बाद भी मैं....
पिछले ही महीने एक छोटी लड़की को अपने पास में है न... गज्जू और टिंकू उसको चिढ़ा रहे थे। मैंने खूब कहा कि बच्ची है ऐसे ना करो,डराओ भी मत पर वो नहीं माने तो मैं एक थप्पड़ मार कर भाग आया और आज वही गज्जू और उसके दोस्तों ने मुझे खूब मारा- पीटा।
देखो न बहन क्या हालत कर दी मेरी।
इतना सुनना ही था कि उमंग को गुस्सा आ गया
गुस्से से लाल पीली हो गई लेकिन उमंग तो उमंग ही थी । मन ही मन कहने लगी ' क्रोध विनाश की पहली सीढ़ी हैं '
क्रोध में मैं वह नहीं कर सकती जो मेरे और मेरे परिवारजन को नुकसान पहुंचाए।
आखिर क्या कर लूंगी मैं? हम गरीब - दलित की सुनेगा भी कौन?
मन मसोसकर चुपचाप बैठ गई । सहसा ख्याल आया कि पास ही के गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय था उसमें एक शिक्षिका थी उसके बारे में उमंग ने खूब सुन रखा था।
वह अपने भाई को लेकर स्कूल की ओर चल पड़ी।लगभग 4-5 किलोमीटर दूरी तय करने के बाद पहुंचे तब जाकर स्कूल पहुंचे और शिक्षिका से मिले। उसने उमंग की तरफ देखा तो देखती ही रह गई। पूरे जोश और आंखों में चमक लिए कह रही थी आप ही मुझे इसका समाधान बता सकती है। गुरु तो आखिर गुरु होता है।मैंने आपके बारे में बहुत सुना हैं,आप अपने स्कूल के बच्चे ही नहीं अपितु जहां कही भी गरीब - दलितों के साथ गलत होता देखती है । हमेशा उनका साथ देती है , इसी उम्मीद के साथ यहां आई हूँ।
शिक्षिका ने पूरी कहानी सुनी तो पता चला कि ये तो वहीं बच्चे हैं जो इसी स्कूल में पढ़ते हैं।
वह तुरंत कक्षा में गई और एक - एक करके सभी बच्चों को परिसर में पंक्ति से खड़ा कर दिया। वहीं से ऊंचे स्वर में आवाज लगाई। रमन और उमंग बाहर आओ। दोनों को देखकर शैतान मंडली के सभी बच्चे हक्के- बक्के रह गए। रमन तो उमंग का भाई निकला और ये इसको लेकर यहां भी आ गई। सभी डरे हुए इसलिए थे क्योंकि उमंग ही वह लड़की थी जो कुछ भी ठान लेती उसे पूरा करके ही दम लेती थी।
शिक्षिका ने जैसे ही बच्चों को माफ़ी के लिए कहा सभी बच्चों ने रमन ओर उमंग से माफ़ी मांग ली और दोनों बहन- भाई घर चले गए।
इस पूरे घटनाक्रम में साहस उमंग का तो था ही लेकिन जब कभी भी आस - पड़ोस में कोई समस्या हो जाती तो बड़े- बूढ़े, बच्चे सभी उमंग को याद किया करते। आखिर उमंग सच्ची और बुद्धि का समयानुकूल उपयोग कर समाधान करने वाली थी। देखते ही देखते उमंग आस - पास के गांवो में जानी जाने लगी अब सब उसे ' उमंग शेरनी' कहने लगे थे।
- नाम - किरण बैरवा
- शिक्षा - M.A. B.Ed
- कार्य - वरिष्ठ अध्यापक (हिंदी)
- माता का नाम- श्रीमती मथुरा देवी
- पिता का नाम- रामसहाय बैरवा
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