शिवमंगल सिंह की कहानी पेट और पीठ । हिंदी कहानी

कहानी शीर्षक- पेट और पीठ
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मैं टाटानगर की ओर से आ रहा था।गरमी से यात्री परेशान थे रेल के डब्बे में जो पंखे लगे थे , उससे गरम हवा आ रही थी। जैसे ही रेल गाड़ी राउरकेला स्टेशन में पहुंची , रेलवे स्टेशन की गतिविधियों अचानक तेज हो गयी, भीषण गर्मी से सम्पूर्ण वातावरण झुलस रहा था।
अब स्टेशन में शोरगुल में मच गया उस प्लेटफार्म पर जितने फेरीवाले , स्टाल वाले ,कोल्ड ड्रिंक वाले, गुटका वाले, फल बेचने वाले, चाय और समोसे बेचने वाले सक्रिय हो गये थे ग्राहकों को लुभाने के लिए चिल्ला रहे थे। सबकी सक्रियता चरम सीमा पर थी। दूसरीओर रेल गाड़ी उतरने और चढने वालों की सक्रियता बढ गयी थी, वापस में धक्का मुक्की से कोलाहल मचा हुआ था । उतरने वाले यात्री उतरकर और चढने वाले रेल गाड़ी में चढ़ कर अपने- अपने विजय अभियान पर खुश हो रहे थे।
अब स्टेशन में चढने- उतरने वालों के सिलसिले थम से गयें । नाश्ता , चाय और कोल्ड ड्रिंक बेचने वाले व्यसायी और ग्राहकों में लेन - देन चल रहा है । दूसरी ओर बहुत से यात्री शीतल पेय जल के लिए तेजी से शीतल जल के लिए अपने कदम तेजी से बढायें चले जा रहे थे । मैं भी शीतल जल प्राप्त करके तेजी से लौट रहा था , उसी समय दूसरी ओर के प्लेटफार्म पर बहुत ही भीड़ भरी यात्रा गाड़ी आकर रुक गयी, जिससे यात्रियों के उतरने का सिलसिला तेज हो गया। प्लेटफार्म पर शोरगुल पहले से काफी तेज हो गया । इन्हीं में से कुछ आदिवासी स्त्रियाँ- पुरुष लकड़ी के गठ्ठे लिए उतरने लगे, उस समय प्लेटफार्म पर रेलवे पुलिस और टीसी आदि सक्रिय हो गये।
इन्हीं यात्रियों के बीच में एक आदिवासी
नव युवती लकड़ी का गठ् ठा सिर पर लिए रेलगाड़ी से उतरती है जो मैली कुचली एक साड़ी में लिपटी हुई थी , एक गमझे से बहुत ही मजबूती के साथ अपने दो साल के बच्चे कोबांध रखा था, जो पसीने से भीगा हुआ बच्चा जोर -जोर से चिल्ला चिल्लाकर रो रहा था। वह बच्चा कुपोषण का शिकार हो गया था, उसके शरीर की हड्डियां साफ़ -साफ़ दिखाई दे रही थी । वह नव युवती के शरीर ब्लाउज भी नहीं पहन पायीं थी उसकी गरबी मानो चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयीं थीं।
एक ओर जहाँ नव युवतियां आधुनिक फैशन के चकाचौंध में अंग प्रदर्शन के प्रतियोगिता में खडी़ है अध्द नग्न शरीर का प्रदर्शन करना सौन्दर्य की कसौटी होते जा रहा है । विश्व भर सुन्दर नव युवतियां और महिलाएं अंग प्रदर्शन के होड़ में खडी़ है , उनके शरीर में परिधान की कमी नये फैशन के चरमोत्कर्ष की ले जा रहा है । आज कल अंग प्रदर्शन से करोड़ों का व्यवसाय हो रहे हैं।
आजकल फिल्मी नायिकाएं अंग प्रदर्शन कर फिल्मों को सुपरहिट करने के लिए कोर कसर नहीं चाहतीं है। वे सब करोड़ों रुपये अर्जित कर वैभव विलासिता जीवन जी रहे हैं। अंग प्रदर्शन आधुनिकता का ब्रांड बना हुआ है। विज्ञापन और सिनेमा के माध्यम से नारी देह को परोसा जा रहा है। हमारे समाज में उच्च वर्ग के युवतियों में इसकी प्रतिस्पर्धा बढती जा रहीं हैं।
लेकिन राउरकेला के स्टेशन पर इस आदिवासी नव युवती यह दशा उसकी गरबी , मजबुरी और भूख की पीड़ा और दूसरी ओर आधुनिक फैशन से ओत प्रोत नव युवतियों और महिलाओं तुलना करना आकाश -पाताल, जीवन - मरण और आग -पानी की के बराबर ही है एक ओर वह गरीब आदिवासी महिलाएं और दूसरी करोड़ों का व्यवसाय अंग प्रदर्शन करने नायिकाएं दिनचर्या कितना अंतर है इसे समझा जा सकता है।
उस आदिवासी नव युवती के पीठ पर चिपका हुआ बच्चा भूख और गरमी से परेशान होकर जोर - जोर से रो रहा था वह अपनी माता के कंधे को पकड़े हुए था। । वह छोटा सा बच्चा अपनी सुरक्षा के लिए माता गरदन पकड़ना कितना आवश्यक होता है।
वह सिर पर लकड़ी का गठ्ठे और पीट पर बच्चे को लिए अपने लकड़ी बेचने के लिए राउरकेला में आयी थी पेट के भूख को मिटाने के लिए एक मात्र यही सहारा था लकड़ी के बेचकर कुछ रुपये मिल जाते होगें इससे ही माॅ - बेटे अपने भूख मिटा लेते होगें।
उसका सावले रंग का वदन ऐसा लग लग रहा था, जैसे वह प्रकृति के गोद में रची बसी हो , वह वन देवी की तरह लग रही थी । लेकिन उस वन देवी की यह कैसी विवशता थी। आदिवासियों की गरीबी की सशक्त उदाहरण लग रही थी । इनके उत्थान के लिए सरकारी योजनाएँ हवा - हवाई हो जाती है
वह रेलगाड़ी से उतर कर प्लेटफार्म पार कर स्टेशन से बाहर जाना चाहती थी। जब वह दो- चार कदम चली थी तभी उसके जीवन में सनी और राहु- केतु की वक्र दृष्टि पड़ गयी । उसकी किस्मत और अधिक फूट गयी, दु भाग्य घर दबोचा और चक्रव्यूह में फंस गयी। उस पर रेलवे के तीन- तीन पुलिस के जवनो ने हमला कर दिया उसे देख कर उनका जोश क ई गूना बन गया , उन्होंने ने अपना रौद्र रूप उस आदिवासी नव युवती पर दिखलाया । वे रेलवे पुलिस के जवान अपने शौर्य और ऐसा दिखा रहे थे , जैसे सरहद हमारे जवान दुश्मनों के नापाक इरादे को ध्वस्त कर दिए हो । अब वे जवान डंडा घुमाने लगें, इनका चेहरा तमतमा रहा था। उस प्लेटफार्म पर ऐसा दृश्य उभर रहा था, मानो जंगल का राजा शेर हिरणी झपटा मार कर दबोच लिया हो। रेलवे पुलिस के शिकंजे फंसी यह नव युवती और शेर की शिकार में फंसी हिरणी में कोई अंतर नहीं था।
प्लेटफार्म पर सभी यात्री व्यस्त थे , कुछ भावुक किस्म के यात्री इस रेलवे पुलिस के विजय अभियान के दृश्य को देख रहे थे, टी .टी .साहब आ गये टी. टी. साहब उस आदिवासी नव युवती देख कर तम तमा गये और तमतमाते हुए बोले "एक तो लकड़ी काटना बडा़ जुर्म है, न टिकट, न ही लगेंज।
वह अपराधी की तरह मौन खडी़ थी, गला सूखा हुआ, पीठ पर का बच्चा जोर - जोर से रो रहा था। उसके पूछताछ होने लगी , वह मौन खडी़ थी। इतने घने मूछों वाला एक सिपाही अपने मूछों पर हाथ फरते हुए चिल्ला कर बोला , " हराम जादी रेलवे तेरे बाप का है न टिकट ना लगेज , इतने में दूसरा जवान चिल्ला उठा " इस हरामजादी देखे तो लगता है रेलवे इसके बाप का है बेशर्म की तरह खडी़ है, टी. टी. तमतमाते हुए बोला चल दो सौ रूपये जुर्माना लगेगा, कुछ रखी हैं तो जल्दी निकाल, एक सिपाही चिल्ला उठा, " साहब भीख मंगी लगतीं है, लकड़ी को जप्त कीजिये। टी.टी. साहब ने लकड़ी के गठ्ठे को जप्त कर लिया।
यह रो रही थी उसके आंखों आंसू की धारा फूट पड़ी थी वह जोर- जोर सिसक रही थी । उसका बच्चा आंसुओं भीगा गया था अब उसकी रोने की सीमा समाप्त हो गयी थी।
वह उस प्लेटफार्म पर अजूबा बनी हुई थी, वह अब मौन खडी़ थी रेलवे के प्रशासन से जवाब मांग रही थी प्लेटफार्म पर यात्री गण चाय, कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे समोसे, पकौड़े आदि खा रहे थे , कुछ लोग गरमा गरम नास्ते रसास्वादन ले रहे थे । इस प्रकरण का तमाशा देख रहे थे। लेकिन कुछ बोलने के बारे सोच नहीं सकता था।
उस आदिवासी युवती का उस प्लेटफार्म पर इस तरह से प्रताड़ित किया जाना उसकी गरबी का मजाक उड़ाया जाना रेल प्रशासन के संवेदनहीनता होने प्रमाण प्रस्तुत कर रहा था , जैसे उसके लिए महत्वपूर्ण मिल गया हो। वह अपराधी की तरह खडी़ थी , उसके आसूं
निकलते ही बाष्प बनकर उड़़ रहे थे। उसका एक और अपराध था कि उसने रेलवे पुलिस और टी. टी. साहब को हप्ता नहीं देती थी शायद वह हप्ता उन्हें देती तो उसकी यह दशा नहीं होती। टी.टी. साहब ने एक रसीद काट रेलवे पुलिस को थमा दिया।
वह रेलवे पुलिस के साथ चली जा रही थीं अपने गुनाहों की सजा काटने के लिए चली जा रही थी । वह लकड़ी बेचकर उसे कुछ रुपये मिल जाते जिससे उसकी और उसके बेटी की भूख मिट जाती लेकिन भूख मिट जाती, लेकिन उसे तो अपनी गरबी, मजबूरी और बेबसी की सजा काट रही थीं।
वह चली जा रही थी, उसके पीठ पर बंधा बच्चा रोते- रोते सो गया था , वह निर्जीव सा पड़ा था उसकी भूख मर चुकीं थी उसके पेट को मालूम था कि अनाज एक दाना भी उसे मिलने वाला नहीं है।
वह जा रही थी जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को लिए जा रहा हो।
इतने में गाड ने हरी झंडी दिखलाई , रेलगाड़ी सीटी बजायी मै तेजी कदम आगे बढाते हुए अपनी बोगी में जाकर बैठ गया और रेलगाड़ी आगे बढ़ गया।
- नाम - शिवमंगल सिंह
- जन्म तिथि: 19 जनवरी 1960
- शिक्षा : स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य, राजनीति विज्ञान, बी.एड.
- पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन: साहित्यनामा, माही संदेश, युवा सर्जन एवं विभिन्न पत्रिकाओं में
- कविताएँ प्रकाशित - लगभग चौबीस-पच्चीस सांझा काव्य संग्रहों कविताएँ प्रकाशित।
- सम्मान - अंतरराष्ट्रीय अटल काव्य लेखन प्रतियोगिता में श्रेष्ठ इक्यावन कविताओं में चयनित
- इंडियन बेस्टीज अवार्ड 2021 जयपुर से, आकाशवाणी, दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण
- पता : जिला दुर्ग , छत्तीसगढ़
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