जिंदगी के टेढ़े मेढ़े रास्ते - जे पी नारायण भारती । कहानी

Jun 28, 2025 - 12:54
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जिंदगी के टेढ़े मेढ़े रास्ते - जे पी नारायण भारती । कहानी
जिंदगी के टेढ़े मेढ़े रास्ते : जे पी नारायण भारती

कहानी शीर्षक - जिंदगी के टेढ़े मेढ़े रास्ते

          शाम के छह बज रहे होंगे। स्वातिअपने कमरे में बेचैनी से चहलकदमी कर रही थी। उसके पति तरुण अभी तक ऑफिस से वापस नहीं लौटे थे। बच्चे बाहर खेलने निकल गए थे। आज  ऑफिस में स्वाति की भेंट एक ऐसे शख्स से हुई जिसने दिल मे उथल पुथल सी मचा दी थी उसके । 

वैभव ...। वैभव ही था वो ...। बीस साल के एक लंबे अरसे के बाद मिले थे दोनों । स्वाति की शादी को अठारह साल हो गए थे। उसका बेटा हर्ष पंद्रह साल का हो गया था जबकि बेटी निधि बारह साल की। 

स्वाति के सामने बार बार वैभव का चेहरा घूम रहा था । उसकी आँखें , उसकी शालीनता , उसके बात करने का तरीका सबकुछ स्वाति के दिलोदिमाग से उतर ही नहीं रहा था । वह अपना ध्यान  जितना हटाने की कोशिश करती उतना ही वैभव की तरफ चला जाता । थक हार कर स्वाति ने एक पत्रिका उठा ली और पढ़ने की कोशिश करने लगी । पर सब व्यर्थ उसके आगे पत्रिका में छपे सारे के सारे तस्वीरों में वैभव ही नजर आने लगा। 

उसने पत्रिका किनारे रखा ,अपनी अलमारी खोली और एक पोटली निकाली फिर धड़कते दिल के साथ उसे खोला । शायद कोई धरोहर थी जो उसने आज तक सबसे छुपा कर रखी थी । 

पोटली खोलकर एक डायरी निकाली जिसके ऊपर लिखा था   "जानू " । अभी स्वाति के पास उस डायरी को पढ़ने का समय नहीं था । बल्कि उसे कुछ और चीज की तलाश थी । बहुत सारे कागज थे जो सलीके से सहेज कर रखे थे उसने । ढूँढते ढूँढते उसे एक अंतर्देशीय पत्र मिला जो वैभव ने लिखा था स्वाति के नाम । 

प्रिय स्वाति जी ..। 

        मैं एक ऐसे सफर में जा रहा हूँ जिसकी मंजिल , मुझे खुद नहीं पता कहाँ होगी । मैंने बहुत कोशिश की आपके साथ चलने की आपके साथ वफ़ा निभाने की पर हर बार नाकाम रहा । मेरी मजबूरियाँ हमेशा ही मेरे और आपके बीच की दूरियों को बढ़ाने का काम किया । चाहता तो बहुत था कि ताउम्र आपके साथ साथ चलूँगा । पर एक बार फिर मेरी मजबूरियों ने मुझे आपसे दूर जाने को विवश कर दिया है। आशा है कि मेरी भावनाओं को समझेंगी और मुझे माफ़ कर अपनी अगली जिन्दगी अच्छे से गुजारेंगी । आप तो जानती हैं कि पिताजी के गुजर जाने के बाद घर की जिम्मेवारी मेरे ऊपर आ पड़ी है मुझे अपनी जिम्मेवारियों को हर हाल में निभाना ही पड़ेगा । मेरी बहन भी कुछ सालों के बाद शादी के लायक हो जाएगी । ऐसी कई सारी बातें है जो मैं अभी नहीं बता सकता । जिंदगी में फिर कभी, कहीं, किसी मोड़ पर मुलाकात होगी तो कई सारी ऐसी बातें है... आपसे जरूर साझा करूँगा । इस वक्त मजबूर हूँ कि कुछ कह नहीं पाया । आपका पूरा हक है मुझपर नाराज होने का , मुझे धोखेबाज , बेवफ़ा कहने का । मैं बुरा नहीं मानूँगा ।  क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हें धोखा दिया है , वादा करके अपने वादे पूरे नहीं कर पाया । मैं ये भी जानता हूँ कि आप मुझे बेवफा ,धोखेबाज  कहोगी पर तुम्हारे अंदर की स्वाति मुझे कभी भुला नहीं पाएगी । जिंदगी के किसी भी मोड़ पर मिलोगी तो एक बार ही सही मेरे बारे में आप सोचोगी जरूर । मेरी मजबूरियाँ मुझे आपसे दूर भले ले जा रही हैं पर आप हमेशा मेरे दिल के किसी कोने में मौजूद रहोगी । इतना समझ लेना कि ये मजबूरियाँ भी मुझे आपको अपने दिल मे रखने से रोक नहीं पायेंगे। जिंदगी में फिर कभी हमारी मुलाकात हुई तो पूछूँगा आपसे कि क्या शादी हो जाने मात्र से हमारी दिल की नजदीकियाँ क्या दूरियों में तब्दील हो जाएगी ? 

क्या हुआ जो हम मिल नहीं पाए ? क्या हुआ जो हमे कुछ ज़िम्मेवारियों औए मजबूरियों ने मिलने नहीं दिया ? क्या किसी के दिल से मिलन कोई मायने नहीं रखता ? क्या मिलन होने के लिए शादी विवाह जैसे रस्मों रिवाजो के बंधन में बंधना जरूरी है ? क्या दैहिक मिलन ही सारा कुछ होता है । 

मैं इन रस्मों रिवाजो को , बंधनो को नहीं मानता । मैं कल यहाँ से जा रहा हूँ और जाने से पहले आपसे मिलना चाहता हूँ । कल शाम को आपका इंतजार करूँगा उसी मंदिर के पीछे । जहाँ हम मिला करते थे । आशा है कि अंतिम बार मिलने जरूर आयेंगी ।

                 आपका जो न हो सका वैभव 

स्वाति को आज भी याद है वो शाम जब वह वैभव से मिलने गयी थी । दोपहर को ही वह पहुँच गयी उस मंदिर में । पर न वैभव को आना था और न ही वह आया । दोपहर से शाम और फिर शाम से रात हो गई पर वैभव नहीं आया । दूसरे दिन वह वैभव के घर भी गयी थी पर वैभव और उसके परिवार वाले वहाँ से जा चुके थे । आस पड़ोस से भी पता नहीं चल पाया कि आखिर  वे लोग गए कहाँ । 

आज बीस साल बाद फ़िर से स्वाति का अतीत सामने आकर खड़ा हो गया था । दरअसल वैभव का परिवार और उसके परिवार का रिश्ता बहुत पुराना था ।

फिर स्वाति के दिमाग मे कई सारी घटनाएँ तेजी से घूमने लगी ।

स्वाति और वैभव दोनों बचपन से साथ साथ पले बढ़े थे । स्वाति एक ऊँचे परिवार से थी जबकि वैभव अपेक्षाकृत मध्यम परिवार से । वैभव के पिता श्यामराय जी पास ही के स्कूल में शिक्षक थे । उनके परिवार में उनकी माँ और एक छोटी बहन थी । छोटा और सुखी परिवार था उनका । 

स्वाति भी उसी स्कूल में पढ़ती थी जहाँ वैभव के पिताजी पढ़ाया करते थे । स्कूल के रास्ते ही में स्वाति का घर पड़ता था । रोज पैदल ही वैभव और उसके पिता स्कूल आते जाते थे । चूंकि रास्ते मे ही स्वाति का घर पड़ता था तो आते जाते कभी कभी वैभव और उसके पिताजी स्वाति के घर चले जाते । स्वाति के पिता ताराचंद जी से अच्छी दोस्ती थी श्यामराय की । 

हैसियत में काफी फर्क था दोनों के बीच पर बिचार मिलते जुलते थे । वैभव का काफी सारा समय स्वाति के घर मे ही बीतता था । धीरे धीरे खेलते कूदते कब दोनों में दोस्ती हो गई पता ही नहीं चला । और फिर दोस्ती प्यार में बदल गयी । 

भले ही वैभव और स्वाति करीब आ गए थे , वैभव ने एक स्वस्थ दूरी बना कर रखी थी क्योंकि वो भली भाँति जानता था कि उनके बीच भले ही दूरियाँ नजदीकियों में बदल गए हो पर अभी भी उनके बीच अमीरी और गरीबी की खाई बहुत बड़ी थी जिसे पाटना बहुत मुश्किल था । पर ये बात स्वाति की समझ से बाहर था । वह तो ऐशोआराम से पली बढ़ी थी । उसने तकलीफ को कभी करीब से नहीं देखा था । 

वैभव उसे अक्सर समझाया करता था कि उनके बीच पैसों की एक बड़ी खाई है और हमारा मिलना बहुत मुश्किल है । इसलिए हमारी दोस्ती सिर्फ दोस्ती तक ही सीमित रहे तो ज्यादा अच्छा रहेगा । 

पर स्वाति हमेशा उसकी बात हँस कर उड़ा दिया करती । कहती मुझे रुपयों पैसों का कोई मोह नहीं है , न ही मैं कोई ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहती हूँ । मैं तो बस तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ परिस्थितियों चाहे जैसी भी हो । मैं तुम्हे जिंदगी के हर मोड़ पर पर इतना साथ देना चाहती हूँ जितना आज तक किसी ने नही दिया होगा । मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम चाहिए । इससे कम कुछ भी नहीं । 

दिन बीतते रहे । उनकी कॉलेज की पढ़ाई चल रही थी । आज तक किसी को भी पता नहीं चल सका था कि दोनों के बीच इतने गहरे रिश्ते हैं । वे स्कूल के कुछ दूर आगे स्थित एक मंदिर में मिलते थे । बड़े बड़े पेड़ों के बीच एक छोटा सा मंदिर था । उसके ठीक आगे एक नदी बहती थी । चारो तरफ हरियाली ही हरियाली , और एक शान्ति थी वहाँ । सामने बहती नदी की धारा की आवाज चार चांद लगा देती थी माहौल को । 

हाथों में हाथ लिए कभी कभी घण्टो वहां बैठ कर समय गुजारते थे स्वाति और वैभव । दोनों की दोस्ती के बारे में दोनों परिवारों को पता था पर प्यार की भनक किसी को नहीं थी। लेकिन दोनों पर पूरा भरोसा था उन्हें । किसी ने कुछ भी नहीं कहा , न तो वैभव के घरवालों ने न ही स्वाति के घर वालों ने।

हाँ कभी कभी वैभव के पिता उसे जरूर समझाया करते कि मैं जानता हूँ कि तुम और स्वाति कभी गलत नहीं कर सकते फिर भी  तुम्हे बताना चाहूंगा कि तुम्हे ही मेरे बाद घर की जिम्मेवारी संभालनी है । इसलिए ऐसा कोई भी कदम मत उठाना की हमारा परिवार बिखर जाए ।

दिन बीतते रहे ।

अचानक एक दिन स्वाति ने उसे मिलने को बुलाया । वह जल्दी से उस मंदिर में पहुँचा । देखा स्वाति चुपचाप नदी के किनारे बैठी पानी को देखे जा रही थी । वैभव को देखकर उसकी आँखों मे आँसू आ गए । 

क्या हुआ स्वाति ?  तुम्हारी आँखों मे आँसू ?वैभव ने उसके कंधों पर हाथ रखते हुए पूछा।

कोई बात नहीं वैभव । उसने अपने आँसू दुपट्टे से पोंछा और वैभव को पास ही के एक पत्थर पर बिठाते हुए एकटक उसे देखने लागी । कुछ पलों की खामोशी के बाद वैभव ने उसकी हथेली को अपने हाथों से थामा और पूछा - क्या हुआ स्वाति तुम रो क्यों रही हो ? क्या मुझे भी रुलाने का इरादा है ? 

स्वाति ने अपना चेहरा वैभव की हथेली पर टिका दिया । अब उसकी आँखों से झर झर आँसू बहने लगे थे और उसकी आंखों रास्ते बहते हुए वैभव की हथेली को भींगो रहे थे । 

वैभव की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी आखिर ऐसी क्या बात हो गयी कि स्वाति लगातार रोये जा रही है । वैभव ने प्यार से स्वाति के बालों पर हाथ फिराया । 

कुछ देर बाद माहौल सामान्य हुआ तो वैभव ने स्वाति से धीमी आवाज़ में पूछा - स्वाति ...स्वाति ...। सो गई क्या ? 

मेरी ऐसी किस्मत कहाँ वैभव की तुम्हारी बाहों में चैन की नींद सो सकूँ ! स्वाति ने जैसे दुःखती रग पर हाथ रखा वैभव के । 

उसके बाद वैभव की हिम्मत ही नहीं हुई कि स्वाति से पुनः वही सवाल पूछ सके । वह शान्त हो गया । कुछ देर के लिए फिर से सन्नाटा छा गया वहाँ । 

स्वाति ने इस मौन को भंग किया । उसने धीरे से अपना चेहरा  उठाया और वैभव की ओर देखा । 

अचानक वैभव का दिल जोरों से धड़क उठा जब उसने स्वाति का चेहरा देखा । उसका चेहरा उसकी आँसुओं से भींगा हुआ था । आँखे तो रो कर सूज सी गयी थी । वैभव ने डरते डरते पूछा - क्या हुआ स्वाति तुम आज इतना व्यथित और विह्वल क्यों हो रही हो। क्या हुआ मुझे भी बताओ । हो सकता है मैं तुम्हारे दुःख को कम कर सकूँ । 

मेरे दुःखों को कम करना चाहते हो ? स्वाति नई वैभव की आँखों मे देखा ।

हाँ बोलो तो सही.. मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?

मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ वो भी अभी इसी मंदिर में ....। बोलो तैयार हो ? स्वाति ने जैसे एक धमाका सा किया । 

वैभव एक पल को निरुत्तर हो गया स्वाति के इस सवाल पर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह स्वाति के इस बात का क्या जवाब दे । 

ये तुम क्या कह रही हो स्वाति? वह भी अचानक इस तरह ? आखिर बात क्या है मुझे खुल कर बताओ ...। 

क्या बताऊँ की मेरी शादी की बातचीत चल रही है ? क्या बताऊँ की अगले हफ्ते मुझे लड़के वाले देखने आने वाले है ? 

वैभव चुप हो गया इस बात पर । 

मैं इस बात का कल जवाब दूँगा तुम्हे । अभी हमे घर जाना चाहिए । शाम होने वाली है । 

नहीं मुझे अभी जवाब चाहिए । स्वाति अपने जिद पर अड़ी रही । पर वैभव ने उसे समझाते हुए किसी तरह मनाया और कल फिर मिलने के वादे के साथ विदा हो गए । 

पर समय को शायद कुछ और ही मंजूर था । स्वाति वैभव का इंतजार करती रह गयी । वैभव लौट कर नहीं आया । अचानक ही एक दिन खबर आई कि मास्टर श्यामराय की बीमारी की वजह से मौत हो गयी । स्वाति ने वैभव से मिलने का बहुत प्रयास किया पर सब व्यर्थ । एक दिन एक खत आया वैभव का जिसमे उसने स्वाति को मिलने के लिए बुलाया था । 

स्वाति ने बहुत कोशिश की मिलने की पर घर में कुछ लोगों के आ जाने के कारण वह नहीं जा सकी उस मंदिर के पीछे । 

तब से लेकर आज तक वैभव स्वाति का मिलन फिर कभी नहीं हो पाया । आज बीस साल बाद अचानक ऑफिस में वैभव दिख गया स्वाति को । वैभव ने बस एक नजर स्वाति को देखा और मुस्कुरा दिया । जवाब में न चाहते हुए भी स्वाति के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी ।

स्वाति सुबह जल्दी तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गयी ।उसके पति तरुण इस कम्पनी के मालिक थे और दूसरे ब्रांच में उनका ऑफिस था । इस ब्रांच की हेड स्वाति ही थी । आज उसी के ऑफिस में वैभव नौकरी की तलाश में आया था । 

काश ... समय रुक जाए । काश कि गाँव मे बिताए वो पल लौट आये ...। पूरी दुनियाँ तुम पर लुटा दूँ वैभव ...पूरी दुनिया । स्वाति ने गाड़ी में बैठते हुए मन ही मन कहा । आज फिर से वैभव उसके ऑफिस में आने वाला था । 

जल्दी जल्दी अभ्यर्थियों को भेजिए । मैं इंटरव्यु शुरू कर रही हूँ । ऑफिस पहुंचते ही स्वाति ने अपने सेक्रेटरी मिश्रा जी को आवाज़ दी । 

एक एक कर सारे कैंडिडेट अपनी अपनी सर्टिफिकेट के साथ  अंदर आते गए ।  अनमने ढंग से सबका इंटरव्यू स्वाति लेती गयी । 

वैभव श्रीवास्तव कौन है ? बाहर मिश्रा जी आवाज आयी तो दिल धक्क से करके रह गया स्वाति का। वह कल से इसी पल का  इंतजार कर रही थी।बाहर सन्नाटा छा गया तो स्वाति का भी दिल बैठने लगा । क्या वैभव चला गया यहाँ से ? क्या वह वैभव से अब कभी नहीं मिल पाएगी ? 

तभी दरवाजे में किसी ने दस्तक दी । 

कम इन ...। हड़बड़ा कर स्वाति ने अंदर आने को कहा । 

वैभव ने कुर्सी की ओर इशारा कर बैठने की इजाजत माँगी तो जैसे एक चोट सी लगी स्वाति को । उसे समझ मे नहीं आया कि क्या पूछूँ इससे । 

कैसे हो वैभव ? इंटरव्यू के सवाल न करते हुए स्वाति ने जैसे ही वैभव से व्यक्तिगत सवाल किया । वह चौंक गया । 

जी ...! वैभव ने बस इतना ही कहा ।

मेरा मतलब है कि यहाँ कैसे ? वह भी इतने अरसे बाद ? 

वैभव ने एक ठंढी सांस ली और बोला - बस किस्मत ने हमें फिर से मिला दिया वरना मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी मुलाकात फिर से हो पाएगी ।  

तुम कहो तुम कैसी हो ? 

मेरी छोड़ो पहले तुम बताओ कि अभी कहाँ हो और यहाँ तक कैसे आ गए ? 

बहुत लंबी कहानी है स्वाति ..। अभी सारी बातें बताना संभव नहीं है कभी फुरसत से बताऊंगा। वैभव ने बात टालने का प्रयत्न किया । 

जी नहीं मुझे अभी जाननी है । स्वाति ने चिर परिचित अंदाज़ में जिद की तो वैभव के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी । 

तुम बिल्कुल नहीं बदली ...। वैभव ने हँसते हुए कहा । 

आखिर दोस्त किसकी थी । स्वाति ने भी भरा पूरा जवाब दिया ।

फिर वैभव ने अपनी कहानी वहीं से शुरू की जहाँ से वे बिछड़े गए थे  ।

मैं जानता था कि अगले दिन मैं अगर तुमसे मिला तो फिर अपने आप को तुमसे अलग नहीं कर पाऊँगा । मैं तुम्हारी जिद के आगे हार जाता और अपने पिता से किये मेरे सारे वादे टूट जाते । मैने तुमसे किये वादे तोड़ दिए तो सिर्फ अपने परिवार को बचाने के लिए । वहां से जाना इस लिए जरूरी था कि तुम कभी भी मेरे घर पहुंच सकती थी । और मैं तुम्हारी जिद को अच्छी तरह जानता था । मैं अपनी माँ और बहन को लेकर शहर आ गया । एक प्राइवेट नौकरी भी कर ली । धीरे धीरे रुपये जमा कर अपनी बहन की शादी की । अपनी शादी तो जैसे भूल ही गया । समय बीतता रहा और फिर मेरी जिंदगी में दीपा आयी । दोनों के विचार मिले तो हमने शादी कर ली । हमारा एक बेटा नयन  हुआ जो अभी दस साल का है । पर कहते हैं न किस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता । अभी तीन साल पहले ही एक सड़क दुर्घटना में मेरी पत्नी दीपा के सिर पर गंभीर चोट लगी । उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वह पागल हो गयी । आज वह इसी शहर के एक मेन्टल हॉस्पिटल में भर्ती है । सप्ताह में एक बार उससे मिलने जाता हूँ । 

यहाँ आकर बेरोजगार हो गया था । कल अखबार में नौकरी के बारे में पढ़ा तो अपना भाग्य आजमाने चला आया । 

वैभव ने बड़ी ही संक्षिप्त में अपनी संघर्ष की कहानी खत्म कर दी थी। ये बात स्वाति भलीभांति जानती थी । वह जानती थी कि वैभव एक खुद्दार व्यक्ति है । अगर वह उसकी मदद की पेशकश भी करती है तो सीधा वह यहां से बिना नौकरी के ही चला जायेगा । इसलिए फिलवक्त उसे नौकरी देना ही स्वाति के पास एकमात्र उपाय था। जिंदगी के कितने टेढ़े मेढ़े रास्ते है इतनीं कम उम्र में ही स्वाति और वैभव ने देख लिया था । 

ठीक है तुम कलसे अपनी नौकरी जॉइन कर सकते हो । स्वाति ने बात फाइनल करते हुए कहा और मिश्रा जी को आवाज दी । 

मिश्रा जी ने फ़ाइल स्वाति के हाथ से ली और बाहर निकल गए । 

पर स्वाति मैं ये नौकरी तभी कर सकता हूँ और सैलरी तभी ले सकता हूँ जब मैं कंपनी के कामों में खरा उतरूंगा । न कि तुम्हारे साथ मेरे निभाये गए रिश्तों का सहारा लूँगा । दूसरी बात की तुम अपने पति से मुझे आज ही मिलाओगी और सारी बातें सच सच उन्हें बताओगी हमारे पुराने रिश्ते के बारे में । ताकि मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी में किसी तरह की कोई अनबन न हो। मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारी जिंदगी में कोई तकलीफ नहीं देख सकता । तुम मेरी बात अच्छी तरह समझ रही होगी । वैभव ने स्वाति की तरफ देखते हुए कहा ।

मैं  तुम्हे अच्छी तरह जानती हूँ मिस्टर वैभव ? स्वाति हँस पड़ी । 

वैभव ने भी जवाब में मुस्कुरा दिया । जिंदगी के टेढ़े मेढ़े रास्तों से होकर आज फिर दोनों एक साथ हो गए थे । कुछ सालों के बाद वैभव की पत्नी दीपा भी ठीक हो गयी । अब उनकी जिंदगी टेढ़े मेढ़े रास्तों से गुजर कर सीधे रास्ते पर आ गयी थी ।

  •  नाम - जे 0पी0 नारायण भारती 
  • C/o –स्व० लालो महतो 
  • ग्राम पोस्ट –बलसगरा
  • जिला– हजारीबाग झारखंड 

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Jitendra Meena Journalist, Editor ( Mission Ki Awaaz )