कर्नाटक के गडग जिले में दलित नाबालिगों पर हमला: 60 लोगों की भीड़ ने बेरहमी से पीटा

Dalit Lives Matters: कर्नाटक के गडग ज़िले में स्थित हरोगेरी गांव में 28 मई 2025 को, गांव के तीन दलित नाबालिग लड़कों को 60 लोगों की भीड़ ने बेरहमी से पीटा और जातिसूचक गालियां भी दी ।

Jun 7, 2025 - 10:08
Jun 7, 2025 - 10:10
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कर्नाटक के गडग जिले में दलित नाबालिगों पर हमला: 60 लोगों की भीड़ ने बेरहमी से पीटा
Photo Credit- Pixabay

Karnataka News  : कर्नाटक के गडग ज़िले में स्थित हरोगेरी गांव से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। 28 मई 2025 को, गांव के तीन दलित नाबालिग लड़कों को भीड़ ने बेरहमी से पीटा। आरोप है कि करीब 60 लोगों की भीड़ ने इन लड़कों को एक झंडे के खंभे से बांध दिया और घंटों तक शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। इन नाबालिक लड़कों की उम्र 12 से 15 वर्ष के बीच है ।

लड़कों को पीटा और जातिसूचक गालियां दी - 

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, लड़कों को न केवल पीटा गया, बल्कि जातिसूचक गालियां भी दी गईं। उनके हाथ-पांव बांधकर उन्हें धूप में खड़ा रखा गया और कुछ लोगों ने मोबाइल से इस हिंसा का वीडियो भी बनाया। सोशल मीडिया पर यह वीडियो सामने आने के बाद घटना की निंदा पूरे राज्य में होने लगी है।

पुलिस की कार्यवाही -

घटना के कुछ ही घंटों बाद वीडियो वायरल होने पर प्रशासन हरकत में आया। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है।

नरगुंड थाने के निरीक्षक बी मंजीनाथ के अनुसार, यह घटना अश्लील मैसेज भेजने के आरोप से शुरू हुई थी। और बताया कि अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि चार और आरोपियों को शुक्रवार को पकड़ा गया। कई आरोपी अभी भी फरार हैं।

कठोर सजा देने की मांग -

इस घटना ने पूरे कर्नाटक में जातीय तनाव और सामाजिक असमानता को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। दलित संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने दोषियों को कठोर सजा देने की मांग की है। इसके साथ ही राज्य सरकार से यह भी मांग की जा रही है कि वह इस मामले की न्यायिक जांच कराए और पीड़ित बच्चों को सुरक्षा व पुनर्वास प्रदान करे।

सामाजिक असमानता की जड़े गहरी है - 

हरोगेरी गांव की यह घटना भारत में आज भी मौजूद जातीय भेदभाव और सामाजिक असमानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। यह केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि समाज की उस सोच पर भी सवाल है जो अब भी दलित समुदाय को दोयम दर्जे का मानती है।

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Jitendra Meena Journalist, Editor ( Mission Ki Awaaz )