अंत और आरंभ तुझसे - पूजा भूषण झा । Mission Ki Awaaz

शीर्षक - अंत और आरंभ तुमसे
अंत और आरंभ तुमसे जीत का हर दंभ तुमसे।
दुर्ग की सारी किलाएँ और खड़ा स्तंभ तुमसे।
हार तुमसे, जीत तुमसे शत्रु भी भयभीत तुमसे
अग्नि का हर ताप तुमसे ,तारिणी का रंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
सृष्टि का आधार तुमसे ,गीता का हर सार तुमसे।
तारिणी-तरणी जलज-रज,नाव का पतवार तुमसे।
भोर की तुम लालिमा हो,है मधूप कचनार तुमसे।
नद-नदी नीलाभ- अंबर फूलों का मकरंद तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
प्रेम का आधार तुमसे,दो नयन शृंगार तुमसे।
रुक्मणि, राधा ,रति तुम, गोपिका उद्धार तुमसे।
कोयलों की गान तुमसे ,मीरा की पहचान तुमसे।
तुमसे ही सारी कथाएं, युद्ध का प्रारंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
कर्ण का दुख धीर तुमसे,द्रौपदी का चीर तुमसे।
हो रथी ,तुम सारथी हो, कौंतेय का तीर तुमसे।
श्राप तुमसे ,पाप तुमसे, पुण्य का प्रताप तुमसे,
सूर्य तुमसे,शौर्य तुमसे,है सभी छलचंद तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।
अंत और आरंभ तुमसे।।
कवयित्री - पूजा भूषण झा, वैशाली,बिहार
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