आशाराम मीना की कविता "आम आदमी"
कल क्यू आज क्यू नही?
फरियाद है क्यू आगाज क्यू नही?
सपनो की दुनिया क्यू बनी है?
डर की छाया क्यू घनी है?
हाथ पसारे काल बुलाए
रह रह कर जिया धनकाए
मर्द है तू नामर्द क्यू बने ?
बेड़ियों में तेरे हाथ क्यू बांधे?
मायूस है क्यू परेशान है क्यू?
तू दबा हुआ अरमान है क्यू ?
उठ कर हाथ बढ़ा कर देख
आंख से आंख मिला कर देख
दुनिया तेरी तेरा जहां है
आ निकल आम ईशान ,
तू भीड़ में छुपा कहा है।।
लेखक: आशाराम मीणा, उप प्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक कोटा।
What's Your Reaction?