महाकुंभ हादसा: मृतकों की संख्या को लेकर सियासी घमासान, विपक्ष ने फिर उठाए सरकार पर सवाल
महाकुंभ भगदड़ में मौतों की गिनती पर मचा सियासी बवाल। राहुल गांधी ने लोकसभा में उठाया सवाल, बोले – सरकार ने आधिकारिक आंकड़ों में की हेराफेरी। जानें क्या है पूरा मामला।

नई दिल्ली । महाकुंभ हादसे में मृतकों की वास्तविक संख्या को लेकर सियासत तेज हो गई है। भगदड़ और अव्यवस्था के चलते हुए हादसे में कितने लोगों की जान गई, इस पर सरकार और विपक्ष के बीच गहरी खाई बनती नजर आ रही है। ताजा मामले में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को यह मुद्दा उठाते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने एक प्रमुख मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कुंभ के दौरान हुए हादसों में 82 लोगों की मौत हुई थी जबकि सरकार केवल 37 मौतों को ही स्वीकार कर रही है।
राहुल गांधी ने कहा,
"जब पूरा देश एक आध्यात्मिक आयोजन में शांति और श्रद्धा से डूबा था, तब अव्यवस्था के चलते कई मासूमों की जान चली गई। पर सरकार आंकड़े छिपा रही है। यह नैतिक रूप से गलत है।"
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा : " BBC की रिपोर्ट बताती है कि कुंभ मेले की भगदड़ में हुई मौतों के आंकड़े छुपाए गए। जैसे COVID में गरीबों की लाशें आंकड़ों से मिटा दी गई थी। जैसे हर बड़े रेल हादसे के बाद सच्चाई दबा दी जाती है। यही तो BJP मॉडल है - गरीबों की गिनती नहीं, तो ज़िम्मेदारी भी नहीं!
BBC की रिपोर्ट बताती है कि कुंभ मेले की भगदड़ में हुई मौतों के आंकड़े छुपाए गए।
जैसे COVID में गरीबों की लाशें आंकड़ों से मिटा दी गई थी।
जैसे हर बड़े रेल हादसे के बाद सच्चाई दबा दी जाती है।
यही तो BJP मॉडल है - गरीबों की गिनती नहीं, तो ज़िम्मेदारी भी नहीं! — Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 11, 2025
विपक्ष कर रहा है अफवाह फैलाने की कोशिश -
बीजेपी प्रवक्ताओं ने विपक्ष के आरोपों को "राजनीतिक स्टंट" करार दिया। उनका कहना है कि सरकार ने सभी घटनाओं की पूरी पारदर्शिता से जांच की है और किसी भी मौत को छुपाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
"राहुल गांधी को तथ्यों के बजाय अफवाहों पर भरोसा करना बंद करना चाहिए।" – बीजेपी प्रवक्ता
क्या कहती है मीडिया रिपोर्ट?
जिस रिपोर्ट का हवाला राहुल गांधी ने दिया, उसमें दावा किया गया है कि अस्पतालों और पुलिस रिकॉर्ड्स के विश्लेषण के आधार पर कुल 82 लोगों की मौतें दर्ज हुईं थीं। इसमें कई ऐसे पीड़ितों के परिजनों के बयान भी शामिल हैं, जिन्होंने शव मिलने में देरी या रिकॉर्ड में नाम न आने की बात कही।
2025 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले इस मुद्दे ने बीजेपी के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। विपक्ष इसको चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है और आने वाले हफ्तों में इस पर और तीखा हमला देखने को मिल सकता है।
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