सुप्रीम कोर्ट : यौन शिक्षा को जल्द शुरू करने की जरूरत, किशोरों को जागरूक करने पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बच्चों को यौन शिक्षा जल्द देनी चाहिए। स्कूलों में यौन जागरूकता पाठ्यक्रम जरूरी। नाबालिग को जमानत देते हुए किशोरों की सुरक्षा पर जोर।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को यौन शिक्षा देने के महत्व पर जोर देते हुए कहा है कि इसे कक्षा नौ के बजाय कम उम्र से ही शुरू करना चाहिए। अदालत का मानना है कि यौन शिक्षा को उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए, ताकि किशोरों को यौवन के दौरान होने वाले शारीरिक और हार्मोनल बदलावों की जानकारी दी जा सके।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने यह टिप्पणी एक नाबालिग को जमानत देने के मामले में की।
अदालत ने कहा, "प्रासंगिक प्राधिकरणों का दायित्व है कि वे अपने विवेक से उचित कदम उठाएं, ताकि बच्चों को किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक बदलावों और उससे जुड़ी सावधानियों की समझ विकसित हो।"
अदालत ने कहा,
"हमारा मानना है कि बच्चों को यौन शिक्षा छोटी उम्र से ही दी जानी चाहिए, न कि कक्षा 9 से आगे।"
यह मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (दुष्कर्म), धारा 506 (आपराधिक धमकी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन हमला) के तहत दर्ज एक मामले से जुड़ा था। इसमें 15 वर्षीय एक किशोर पर आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने किशोर को नाबालिग मानते हुए किशोर न्याय बोर्ड द्वारा तय शर्तों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।अदालत ने इस बात पर बल दिया कि यौन शिक्षा के अभाव में किशोर गलत निर्णय ले सकते हैं। इसलिए, स्कूलों में व्यापक और समयबद्ध यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने की जरूरत है। यह फैसला बच्चों की सुरक्षा और जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट ने यौन शिक्षा को कम उम्र से शुरू करने की वकालत की।
- किशोरों को यौवन और हार्मोनल बदलावों की जानकारी देना जरूरी।
- नाबालिग को जमानत देते हुए किशोर न्याय बोर्ड की शर्तों का पालन करने का निर्देश।
- यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर जोर।
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