Hate Speech Case: जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर राज्यसभा में हलचल तेज

लखनऊ/नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव के खिलाफ राज्यसभा में लंबित महाभियोग प्रस्ताव को लेकर कार्यवाही तेज हो गई है। राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा अब इस मामले में उच्चस्तरीय जांच समिति के गठन की संभावना जताई जा रही है। यह प्रस्ताव दिसंबर 2023 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव के कथित विवादास्पद बयान के बाद पेश किया गया था।
क्या कहा था जस्टिस यादव ने?
कार्यक्रम में न्यायाधीश ने कथित रूप से कहा था—
“यह हिंदुस्तान है और देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा।”
इस बयान की व्यापक आलोचना हुई थी और इसे संविधान की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया गया था।
महाभियोग प्रक्रिया और विपक्ष की भूमिका
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55 विपक्षी सांसदों ने इस प्रस्ताव को राज्यसभा सभापति को सौंपा था।
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नियम के अनुसार, राज्यसभा में कम से कम 50, और लोकसभा में 100 सांसदों का समर्थन अनिवार्य होता है।
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सांसदों के हस्ताक्षर की पुष्टि के लिए धनखड़ के कार्यालय से दो बार ईमेल भेजे गए।
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सभापति ने 21 मार्च को बताया कि एक सदस्य के दो हस्ताक्षर पाए गए, और उन्होंने खुद हस्ताक्षर करने से इनकार किया।
विपक्ष की सफाई:
विपक्षी दलों ने कहा कि तीन अलग-अलग सेट तैयार किए गए थे, और यह गलती सिर्फ तकनीकी त्रुटि है। यदि एक हस्ताक्षर अमान्य भी होता है, तो भी आवश्यक 50 सांसदों की संख्या पूरी है।
आगे की प्रक्रिया
यदि सभापति को प्रस्ताव गंभीर और पर्याप्त लगता है, तो वे न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत तीन सदस्यीय जांच समिति गठित करेंगे।
यह समिति तय करेगी कि जज यादव के आचरण पर महाभियोग की कार्यवाही होनी चाहिए या नहीं।
संविधान और न्यायपालिका पर असर
यह मामला केवल एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़े हैं—
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न्यायपालिका की निष्पक्षता
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संविधान की मूल भावना
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और लोकतांत्रिक संस्थाओं की जवाबदेही
विपक्ष इसे न्यायपालिका में सांप्रदायिक सोच के खिलाफ निर्णायक कदम के रूप में देख रहा है, जबकि सरकार इस पर अब तक सावधानीपूर्वक चुप्पी बनाए हुए है।
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