प्रियंका गारूवार का "मैं और आध्यात्म" लेख
आध्यात्म का अर्थ है, आत्मा का अध्ययन। हमने बाकी विषयों का तो खूब अध्ययन किया है, खूब गहराइयों तक जानने की चेष्टा की है और काफी कुछ सार भी निकाला है। यह हम आमतौर पर करते आए हैं, हैरत की बात है कि जिन विषयों को हम जन्म लेने के काफी समय बाद जानते हैं, यानी कि जब हम थोड़े बड़े होते हैं, तर्क शक्ति हमारे अंदर आती है तब हम उन विषयों से जुड़ते हैं और उन्हीं विषयों को सब कुछ मान लेते हैं। यहां हम बात कर रहे हैं लौकिक विषय जैसे विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी, साहित्य इत्यादि, लेकिन वह विषय जो जन्म-जन्मांतर से हमारे साथ हैं, जिसके ना जाने से हमारा अस्तित्व ही अधूरा है और कहीं न कहीं अवचेतन रूप से हम उसी विषय की खोज करने में सारा जीवन गुजार देते हैं, लेकिन सही रीति से हम उस विषय को नहीं जान पाते हैं। यहां हम बात कर रहे हैं आध्यात्मिक विषय की, हम सब कुछ पढ़ते हैं मगर नहीं पढ़ते तो बस खुद के बारे में कभी सोचा है कि "मैं" यानी कौन? यह सवाल कभी खुद से पूछा है कि मैं कौन हूँ? यदि पूछा होता तो शायद हम में से कोई यहां दुख का अनुभव नहीं करता। अगर हमसे कोई पूछे कि आप कौन हैं? तो हम तपक से अपने शरीर का नाम बता देंगे कि मेरा नाम रमेश है, मीना है, सीमा है इत्यादि। हम शरीर की पहचान के नशे में इतने डूबे रहते हैं, उम्रभर की हम असल में "मैं कौन" के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं करते। हम जिंदगी भर उन विषयों के बारे में पढ़कर खुद को खुश और संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं जिनका वास्तविकता में खुशी और संतोष से कोई संबंध ही नहीं होता। लौकिक विषयों का अध्ययन हमारे शरीर के निर्वाह के लिए होता है, लेकिन आध्यात्मिक विषय का अध्ययन हमारी आत्मा के निर्वाह के लिए होता है। हम डॉक्टर, इंजीनियर, वकील सब कुछ बन जाते हैं, बहुत कामयाब भी हो जाते हैं, मगर वह एक अनजानी सी खलिश हमेशा हमारे अंदर रहती है जो हमें पूरी तरह खुश होने नहीं देती। यह उसी तरह है जैसे किसी पौधे की जड़ को पानी न देकर उसकी टहनियों को या पत्तियों को पानी देना। जिस तरह हमारे शरीर की ताकत के लिए खाना-पीना जरूरी है, उसी प्रकार हमारे अंदर जो आत्मा है उसके भोजन का इंतजाम भी तो जरूरी है। आध्यात्म ही वह विषय है जो अपने आप को जानने की सही विधि हमको बताता है। "मैं कौन" यह सवाल हम सबका है और इस सवाल के उत्तर की खोज हमको एक बेहतर इंसान बनाती है। जब हम "मैं" को जानने की यात्रा शुरू करते हैं, तो दरअसल हम खुद का सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनाने की यात्रा भी साथ ही शुरू कर देते हैं। हम सारी उम्र जिस खुशी और संतोष को वस्तुओं और अन्य लोगों में खोजते रहते हैं, दरअसल इस यात्रा के दौरान या कहें कि इस अध्ययन के दौरान हम समझते हैं कि वह खुशी और संतोष जो हम लोगों में और वस्तुओं में देख रहे थे, वह, तो असल में हमारे अंदर ही है, लोगों या वस्तुओं में नहीं। जो कुछ भी था, वह तो हमारी आत्मा में पहले से ही मौजूद था। तो यह जो "मैं" है, वही असल में हम हैं, मैं यानी "आत्मा"। वह शक्ति जो आपके शरीर को चलाती, सोचती है, अगर वह शक्ति शरीर में नहीं है, तो इस शरीर का कोई महत्व नहीं। फिर चाहे यह शरीर कितना ही सुंदर क्यों ना हो, यह शक्ति इसमें से निकल जाए तो हमारे प्रिय भी हमको ज्यादा देर घर में रखना पसंद नहीं करेंगे। अब तक आपको यह समझ आ चुका होगा कि आध्यात्मिक अध्ययन हमारे लिए कितना जरुरी है। आध्यात्मिक की सच्ची परिभाषा केवल और केवल इतनी सी है कि "मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आई हूँ? मुझे क्या करना है?" बस इन ही सवालों का ही पूरा सार है आध्यात्म। आध्यात्म का मतलब किसी भी प्रकार की अनावश्यक कर्मकांडों से नहीं है। इन ही तीनों सवालों का उत्तर ढूंढने की प्रक्रिया में आपकी जीवन की सारी तकलीफ कब खत्म हो जाती है, पता नहीं चलता। इन तीनों सवालों के उत्तर खोजने के दौरान आप अपने बाकी उलझनों से स्वतः ही निकल जाएंगे। आप देखोगे कि आपके सवाल खत्म होने लगेंगे, आपके लिए सफलता के मायने बदलने लगेंगे। आप खुद में भरपूर होने लगेंगे, बेवजह के बंधनों से मुक्त होने लगेंगे, एक समय पर आपको प्रश्न चिन्ह निरर्थक लगने लगेंगा। और यकीन मानिए, यही वह अध्ययन है जो आपको किसी जिले का नहीं, किसी राज्य का नहीं, किसी देश का नहीं, बल्कि पूरे संसार के सर्वोच्चपद का मालिक बना देगा।
कुमारी प्रियंका गारुवाल
एम ए इंग्लिश लिटरेचर और मास्टर इन टूरिज्म मैनेजमेंट
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