तेरह साल बाद मिली न्याय की जीत: वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सत्येन्द्र मुरली कोर्ट से दोषमुक्त करार

गांधी-आंबेड़कर कार्टून विवाद में फंसे वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया प्रोफेसर डॉ. सत्येन्द्र मुरली को आखिरकार तेरह वर्षों बाद न्याय मिल ही गया। हाल ही में कोर्ट ने उन्हें एक पुराने मामले में दोषमुक्त करार दिया, जिसने उन्हें बिना किसी ठोस कारण के वर्षों तक कोर्ट के चक्कर कटवाए। यह मामला 2012 का है, जब सोशल मीडिया पर महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर को लेकर वैचारिक मतभेदों की चर्चाएं जोरों पर थीं। उस समय इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था, और उस पर विचार साझा करना आम बात हो चुकी थी।
इसी दौर में डॉ. सत्येन्द्र मुरली समाचार पत्र-पत्रिकाओं और टेलीविजन में सक्रिय पत्रकारिता कर रहे थे। उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले महात्मा गांधी का एक व्यंग्यात्मक कार्टून पोस्ट किया था। यह कार्टून ऐतिहासिक प्रसंगों और तथ्यों पर आधारित एक सामाजिक टिप्पणी जैसा था, जिसे लेकर कुछ वर्गों में नाराजगी उत्पन्न हो गई। यह पोस्ट डॉ. आंबेड़कर को लेकर एनसीईआरटी में छपे एक अपमानजनक कार्टून को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में चल रही बहस के दरमियान की गई थी।
इस फेसबुक पोस्ट के आधार पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की जनअभाव अभियोग निराकरण समिति ने जयपुर के महेश नगर थाने में डॉ. मुरली के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। आरोप यह लगाया गया कि यह पोस्ट राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान करती है, जो कि सरासर राष्ट्रद्रोह है और समाज में कटुता फैलाने की मंशा से की गई है। इसके बाद डॉ. मुरली को तेरह वर्षों तक कोर्ट की कार्यवाहियों का सामना करना पड़ा।
इन तेरह वर्षों में उन्होंने सामाजिक, मानसिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया। एक पत्रकार होने के नाते न केवल उनकी पेशेवर छवि पर असर पड़ा, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी उन्हें तनाव झेलना पड़ा। उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पाए गए, फिर भी उन्हें लंबे समय तक न्याय का इंतजार करना पड़ा।
हाल ही में कोर्ट ने इस प्रकरण में फैसला सुनाते हुए डॉ. सत्येन्द्र मुरली को सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया। अदालत ने माना कि फेसबुक पर साझा किया गया कार्टून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है और इसका उद्देश्य किसी विशेष समुदाय या व्यक्ति को अपमानित करना नहीं था। न्यायालय ने यह भी कहा कि बिना पर्याप्त कारण के इतनी लंबी कानूनी प्रक्रिया न केवल व्यक्ति विशेष के अधिकारों का हनन करती है, बल्कि न्याय व्यवस्था की गरिमा पर भी प्रश्न उठाती है।
डॉ. मुरली की यह कानूनी जीत न केवल उनके लिए एक व्यक्तिगत राहत है, बल्कि यह उन सभी स्वतंत्र पत्रकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी में विश्वास रखने वाले नागरिकों के लिए भी एक प्रेरणा है। यह मामला एक उदाहरण है कि किस प्रकार वैचारिक मतभेदों को दबाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग किया जा सकता है, और कैसे सत्य की जीत अंततः होती है।
अब जब कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त करार दे दिया है, डॉ. मुरली एक बार फिर पूरी ऊर्जा के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय होने को तैयार हैं। उनका यह संघर्ष प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक अहम अध्याय बन चुका है।
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