जातीय और लैंगिक हिंसा पर नियंत्रण हेतु प्रधानमंत्री को भेजा गया ज्ञापन, बहु-आयामी रणनीति की मांग

जातीय भेदभाव, लैंगिक हिंसा और सामाजिक असमानता के मामलों में बढ़ोत्तरी के बीच, पॉलिटिकल जस्टिस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत ज्ञापन भेजकर अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम के लिए बहु-स्तरीय संस्थागत पहल लागू करने की मांग की है।
ज्ञापन में पार्टी के संस्थापक डॉ. बी.पी. अशोक और अध्यक्ष राजेश सिद्धार्थ ने सरकार का ध्यान उन खतरनाक आंकड़ों की ओर आकर्षित किया है, जो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट और विभिन्न न्यायालयों की टिप्पणियों में उजागर हुए हैं।
बढ़ते अत्याचार के आंकड़े
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अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के 59,311 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश प्रमुख हैं।
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अनुसूचित जनजातियों पर 10,064 मामले, जिनमें मध्यप्रदेश और ओडिशा जैसे राज्य अग्रणी हैं।
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महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या 4.45 लाख से अधिक, जिनमें घरेलू हिंसा, यौन शोषण और मानव तस्करी शामिल हैं।
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SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्धि दर केवल 30%, जबकि 90% से अधिक मामले लंबित हैं।
न्यायालयों की गंभीर टिप्पणियाँ
ज्ञापन में यह उल्लेख किया गया है कि उच्चतम न्यायालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों ने बार-बार इस तथ्य को रेखांकित किया है कि केवल सख्त कानून या दंड पर्याप्त नहीं हैं। सामाजिक जागरूकता, समुदाय की भागीदारी और संस्थागत जवाबदेही को मजबूत किए बिना इस समस्या से निपटना असंभव है।
ज्ञापन में प्रस्तावित रणनीति:
ज्ञापन में एक समग्र, निवारक और सामुदायिक सहभागिता पर आधारित मॉडल की मांग की गई है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की जिम्मेदारी तय की गई है:
1. शिक्षा क्षेत्र में सुधार:
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पाठ्यक्रम में समानता, संवैधानिक मूल्य और भेदभाव विरोधी शिक्षा को शामिल करना।
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SC/ST कानून, POCSO और घरेलू हिंसा अधिनियम पर नियमित जागरूकता सत्र आयोजित करना।
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विद्यालय स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना।
2. ग्राम पंचायत एवं स्थानीय निकाय:
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तिमाही जन-सुनवाई, आत्मरक्षा प्रशिक्षण और SC/ST पर विशेष निगरानी।
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पंचायत स्तर पर 'सामाजिक न्याय पर्यवेक्षक' की नियुक्ति।
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‘हिंसा-मुक्त पंचायत सूचकांक’ योजना लागू करने का सुझाव।
3. धार्मिक और आध्यात्मिक नेतृत्व की भागीदारी:
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धर्मगुरुओं से समानता और स्त्री-सम्मान पर केंद्रित प्रवचन देने का अनुरोध।
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"Faith for Equality" अभियान के तहत धार्मिक संस्थानों को सामाजिक समता के लिए प्रेरित करना।
4. मीडिया एवं डिजिटल गवर्नेंस:
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MyGov, दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे माध्यमों के ज़रिए सामाजिक न्याय संदेशों का प्रचार।
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ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो के जरिए स्थानीय भाषा में अधिकार जागरूकता।
कार्यान्वयन की रूपरेखा:
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सामाजिक न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय के संयुक्त समन्वय से प्रस्ताव लागू किया जाए।
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SCSP/TSP बजट से इन योजनाओं के लिए वित्तीय प्रावधान।
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एक राष्ट्रीय सामाजिक न्याय परिषद का गठन, जिसमें न्यायाधीश, सामाजिक कार्यकर्ता एवं ज़मीनी संगठन शामिल हों।
निष्कर्ष:
पॉलिटिकल जस्टिस पार्टी ने इस ज्ञापन के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जातीय एवं लैंगिक हिंसा केवल कानून व्यवस्था की चुनौती नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सोच, परंपराओं और संस्थाओं की भूमिका से जुड़ा प्रश्न है। इसलिए, प्रत्येक संस्था की साझेदारी, जागरूकता और नैतिक सुधार की आवश्यकता है।
पार्टी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह संविधान में निहित समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और गरिमा के मूल्यों को लागू करने हेतु, इस समावेशी और निवारक ढांचे को कानूनी स्वरूप में जल्दी लागू करे।
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