रेणुका सिंह ठाकुर: पिता के सपनों को साकार करती भारत की तेज गेंदबाज़ । Renuka Singh Thakur Biography
Cricketer Renuka Singh Thakur : पिता के निधन के बाद मां ने नौकरी संभाली और भाई ने क्रिकेट छोड़ दिया, ताकि रेणुका भारत के लिए खेल सके। पढ़िए इस त्याग और सफलता की प्रेरणादायक कहानी।

Renuka Singh Thakur - भारतीय महिला क्रिकेट टीम की उभरती हुई तेज गेंदबाज रेणुका सिंह ठाकुर न सिर्फ अपनी गेंदबाज़ी से विरोधियों को चौंकाती हैं, बल्कि उनके संघर्ष और समर्पण की कहानी भी लाखों युवाओं को प्रेरणा देती है। हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से कस्बे से निकलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जगह बनाना कोई आसान सफर नहीं था, लेकिन रेणुका ने ये कर दिखाया — और ये सफर कहीं न कहीं उनके दिवंगत पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने जैसा था।
( Photo - Cricketer Renuka Singh Thakur )
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि -
रेणुका सिंह का जन्म 1 फरवरी 1996 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुआ। उनका बचपन रोहड़ू नामक कस्बे में बीता, जहां उनके पिता श्री केहर सिंह ठाकुर सिंचाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे। दुर्भाग्यवश, जब रेणुका मात्र 3 वर्ष की थीं, तब 1999 में उनके पिता का निधन हो गया। पिता की असमय मृत्यु के बाद परिवार ने कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उनकी मां ने कभी हार नहीं मानी और रेणुका के क्रिकेट के सपनों को जीवित रखा।
पिता की याद में बना टैटू -
रेणुका के लिए क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि अपने पिता के प्रति श्रद्धांजलि है। उन्होंने अपने हाथ पर एक भावनात्मक टैटू बनवाया है जिसमें एक छोटी लड़की अपने पिता के साथ खेलती नज़र आती है। यह टैटू उनके उस अटूट प्रेम और जुड़ाव को दर्शाता है जो वो अपने पिता के साथ महसूस करती हैं, भले ही वह आज उनके साथ शारीरिक रूप से नहीं हैं।
( Photo - रेणुका सिंह ठाकुर अपनी मां के साथ )
शुरुआती क्रिकेट सफर -
रेणुका को बचपन से ही क्रिकेट में रुचि थी, लेकिन उन्हें पेशेवर प्रशिक्षण लेने का अवसर HPCA (हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन) द्वारा संचालित क्रिकेट अकादमी से मिला। उन्होंने वहां अपनी गेंदबाज़ी को निखारा और जल्द ही राज्य स्तर पर पहचान बनाई। उनकी स्विंग गेंदबाज़ी और सटीक लाइन-लेंथ ने उन्हें अलग मुकाम दिलाया।
भारत के लिए डेब्यू और अंतरराष्ट्रीय पहचान -
रेणुका सिंह ने भारत के लिए टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अगस्त 2021 में डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने वनडे टीम में भी अपनी जगह बनाई। 2022 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उनके प्रदर्शन ने सभी का ध्यान खींचा, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण विकेट लेकर भारत को रजत पदक दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।
( Photo - Renuka Singh Thakur )
2016: कर्नाटक के खिलाफ हैट्रिक से धमाकेदार शुरुआत -
रेणुका सिंह ने 2016 में अंडर-19 स्तर पर कर्नाटक के खिलाफ एक ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। उस मैच में उन्होंने लगातार तीन गेंदों पर तीन विकेट लेकर हैट्रिक हासिल की। इस कारनामे ने न सिर्फ उन्हें सुर्खियों में ला दिया, बल्कि उनके कौशल और संभावनाओं को भी सबके सामने रखा। अंडर-19 क्रिकेट में हैट्रिक लेना बेहद दुर्लभ है, और रेणुका की इस उपलब्धि ने यह साबित कर दिया कि वह बड़े मंच के लिए तैयार हैं।
2019: बीसीसीआई महिला वनडे टूर्नामेंट में विकेटों की बारिश-
2019 में रेणुका सिंह ने बीसीसीआई द्वारा आयोजित महिला सीनियर वनडे टूर्नामेंट में शानदार गेंदबाज़ी का प्रदर्शन किया। इस टूर्नामेंट में उन्होंने कुल 23 विकेट लिए और सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाज बनीं। उनकी कसी हुई गेंदबाज़ी और स्विंग ने बल्लेबाज़ों की परीक्षा ली और उन्होंने लगातार अपनी टीम को सफलता दिलाई। उनके इस प्रदर्शन ने चयनकर्ताओं का ध्यान खींचा और यह घरेलू सीज़न उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
खास बातें: -
हैट्रिक: अंडर-19 स्तर पर 2016 में कर्नाटक के खिलाफ।
टॉप विकेट टेकर: 2019 बीसीसीआई सीनियर महिला वनडे टूर्नामेंट में 23 विकेट।
खासियत: स्विंग गेंदबाज़ी, नई गेंद से नियंत्रण, यॉर्कर और सटीक लेंथ।
रेणुका सिंह की कामयाबी का राज -
रेणुका की सफलता के पीछे उनकी कड़ी मेहनत, फिटनेस पर ध्यान और निरंतर अभ्यास है। वह तकनीकी रूप से बेहद सुदृढ़ हैं और अपनी गेंदबाज़ी में विविधता लाने के लिए लगातार काम करती हैं। घरेलू स्तर पर उनके रिकॉर्ड और प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय महिला टीम में जगह दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गांव के टूर्नामेंट से टीम इंडिया तक: रेणुका की शुरुआत-
रेणुका और उनके भाई विनोद दोनों को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था। वे गांव में होने वाले टूर्नामेंट में हिस्सा लेते थे। अक्सर मैदान पर रेणुका अकेली लड़की होती थीं, जो सुबह और शाम दोनों मैचों में खेलती थीं। उनका जुनून देखकर यह साफ था कि वह इस खेल में कुछ बड़ा करना चाहती हैं।
लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। क्रिकेट का खर्च, गियर, सफर, कोचिंग — यह सब संभालना मां के लिए मुश्किल होता गया।
भाई का त्याग: जब विनोद ने छोड़ा क्रिकेट -
घर में केवल एक ही कमाने वाली थीं — मां सुनीता। दो बच्चों के क्रिकेट खर्च को उठाना उनके लिए संभव नहीं था। ऐसे में भाई विनोद ने खुद आगे बढ़कर यह खेल छोड़ने का निर्णय लिया, ताकि रेणुका अपना सपना पूरा कर सकें।
विनोद का यह बलिदान रेणुका की सफलता में सबसे बड़ा योगदान बना। उन्होंने अपनी बहन के सपनों को खुद से ऊपर रखा, और उसी सपने को साकार करने के लिए रेणुका ने हर चुनौती का डटकर सामना किया।
संघर्ष से सफलता की ओर -
रेणुका की मेहनत और मां व भाई के बलिदानों ने आखिर रंग लाया। उन्होंने राज्य की टीम में जगह बनाई, फिर भारत ए और फिर भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा बनीं। उनका सफर दिखाता है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर परिवार का साथ और आत्मविश्वास हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
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