बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एनडीए की जीत में चिराग पासवान की भूमिका अहम, पासवान वोट बैंक पर टिकी उम्मीदें
बिहार चुनाव 2025: चिराग पासवान की रणनीति पर टिकी है एनडीए की सफलता, दलित वोट बैंक और गठबंधन राजनीति में नया समीकरण

पटना । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है और एनडीए गठबंधन एक बार फिर से सत्ता में वापसी की तैयारी में पूरी ताक़त झोंक चुका है। इस बार एनडीए की रणनीति में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। चिराग न केवल अपने परंपरागत पासवान वोट बैंक को एनडीए के पक्ष में लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी सार्वजनिक मंचों से समर्थन मांगते नज़र आ रहे हैं।
पासवान वोट बैंक पर टिकी है एनडीए की बड़ी उम्मीद-
बिहार की राजनीति में पासवान समुदाय एक बड़ा और संगठित वोट बैंक माना जाता है, खासकर दलित समुदाय में इसका खासा असर है। चिराग पासवान, अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए इस बार एनडीए को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनावों में लोजपा रामविलास ने अकेले लड़कर नीतीश कुमार को चुनौती दी थी, लेकिन इस बार परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। एनडीए में शामिल होकर चिराग अब पूरी तरह से भाजपा और जेडीयू के साथ खड़े हैं।
नीतीश कुमार के लिए पहली बार वोट मांग रहे हैं चिराग-
चिराग पासवान के राजनीतिक सफर में यह पहली बार है जब वे खुलकर नीतीश कुमार के समर्थन में चुनावी मंचों पर दिख रहे हैं। पिछली बार उनके और नीतीश के बीच कड़वाहट साफ नज़र आती थी, लेकिन इस बार भाजपा के हस्तक्षेप और गठबंधन की रणनीति के तहत दोनों नेता एक ही मंच पर आ सकते हैं। इससे एनडीए को सामाजिक समीकरणों में बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
राजनीतिक समीकरण और संभावित असर-
एनडीए को भरोसा है कि चिराग की उपस्थिति से पासवान समुदाय के वोटरों में सकारात्मक संदेश जाएगा, जिससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। वहीं, चिराग के लिए भी यह चुनाव खुद को राज्यस्तरीय नेता के रूप में स्थापित करने का बड़ा मौका है। यदि वे अपने समुदाय के वोटरों को एनडीए के पक्ष में मोड़ने में सफल रहते हैं, तो भविष्य की राजनीति में उनकी भूमिका और मज़बूत हो सकती है।
चुनाव प्रचार में जोश, पर चुनौतियां भी कम नहीं-
चिराग पासवान की लोकप्रियता युवाओं और दलित समुदाय में है, लेकिन नीतीश कुमार के पुराने आलोचक होने के नाते कुछ समर्थकों को समझाना उनके लिए चुनौती बन सकता है। उन्हें यह दिखाना होगा कि एनडीए में रहकर भी वे अपने समुदाय के हितों की रक्षा कर सकते हैं।
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