Pashu Parichar Exam 2024 : महिला को तोड़नी पड़ी अपनी चूड़ियां, पशु परिचर का परीक्षा देने गई थी महिला

Barmer News: आज राजस्थान में पशु परिचर की परीक्षा थी, बाड़मेर से एक वीडियो सामने आया जिसमें महिला अपनी चूड़ियां तोड़ती नजर आ रही है । वह महिला बताती है उसने सब कुछ उतार दिया लेकिन जब चूड़ियां तोड़ने की बारी आई तो वह सहम गई लेकिन मजबूरी थी और परीक्षा देनी थी इसीलिए चूड़ियां हाथ से खुलने नहीं की वजह से चूड़ियां तोड़नी पड़ी ।

Dec 1, 2024 - 21:50
Dec 1, 2024 - 22:01
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Pashu Parichar Exam 2024 : महिला को तोड़नी पड़ी अपनी चूड़ियां, पशु परिचर का परीक्षा देने गई थी महिला
फोटो : परीक्षा केंद्र पर चूड़ियां तोड़ती महिला ( Pashu Parichar Exam 2024 )

Pashu Parichar Exam 2024 : राजस्थान के बाड़मेर जिले से एक ऐसा वीडियो आया है जिसे देखकर शायद आप भी कहेंगे कि यह बहुत गलत हुआ ! आज राजस्थान में पशु परिचर की परीक्षा थी, बाड़मेर से एक वीडियो सामने आया जिसमें महिला अपनी चूड़ियां तोड़ती नजर आ रही है । वह महिला बताती है उसने सब कुछ उतार दिया लेकिन जब चूड़ियां तोड़ने की बारी आई तो वह सहम गई लेकिन मजबूरी थी और परीक्षा देनी थी इसीलिए चूड़ियां हाथ से खुलने नहीं की वजह से चूड़ियां तोड़नी पड़ी । 

चूडियाँ महिला के सुहागन की निशानी है, विधवा होने पर हिंदू महिला चूडिय़ां तोड़ती हैं वह सुहागिन होने के अन्य प्रतीकों का भी त्याग करती है जैसे :- मांग का सिंदूर मिटाना, माथे की बिंदी का मिटाना, मंगलसूत्र निकालना आदि किंतु भावनात्मक आवेगवश हाथों को जोर से पटकने अथवा छाती पीटने पर चूडिय़ां टूटती ही है । विवाहित स्त्रीयों के लिए जितना ज्यादा सोने का अभूषण जरूरी नहीं होता उससे कंही ज्यादा चूड़ियों का पहनना जरूरी होता है।

भावना बिश्नोई ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा " यह वीडियो शायद आज के पशु परिचर के एग्जाम का है जिसमें महिलाओं द्वारा आभूषण न पहनकर आने के बावजूद उनको बाहर रोका गया,उनकी तलाशी ली गई, चलो यहां तक ठीक है, लेकिन जो हमारी परंपरा है उनके खिलाफ जाकर इनके हाथ-पैर की अंगूठियों को उतारा गया, एक शादीशुदा महिला की पहचान उनके मंगलसूत्र और चूड़ियों जैसे आभूषणों द्वारा होती है, 

लेकिन इन सब को निकलने का बोला जाता है, हमारी भारतीय परंपरा में चूड़ियां सुहागन महिलाओं की निशानी होती है, उनको निकालना हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने जैसा है।

इन सब के अलावा पहनावे को लेकर भी विवाद होता है,लेकिन जब बात हिजाब को लेकर आती है तो न उनके पहनावे को लेकर बात होती है और ना ही उनके हाथों में बंधे कलावे और धागे को लेकर।

अब कुछ लोग बोलेंगे की हिंदू मुस्लिम की बात हो रही है लेकिन असल में यह सोचने लायक बात है क्योंकि जितनी भी भर्तियां होती है उसमें रूल्स के नाम पर बच्चियों और महिलाओं की वेशभूषा को लेकर विवाद हो जाता है।अन्य धर्म की महिलाओं के लिए अलग रूल्स और हमारे धर्म की महिलाओं के लिए अलग रूल्स। ये कहां तक उचित है? "

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Jitendra Meena Journalist, Mission Ki Awaaz